A Review Of hanuman chalisa

“Health conditions is going to be ended, all pains might be gone, each time a devotee continually repeats Hanuman the brave’s title.”

Remaining absolutely aware about The dearth of my intelligence, I pray for you the son of Pavan, the Wind God (Hanuman). I humbly check with you to definitely grant me toughness, intelligence and know-how and consider absent all my afflictions and shortcomings.

You have got the essence of Ram bhakti, could You mostly remain the humble and devoted servant of Raghupati. 

हरिओम शरण की मधुर आवाज में हनुमान चालीसा

व्याख्या – रोग के नाश के लिये बहुत से साधन एवं औषधियाँ हैं। यहाँ रोग का मुख्य तात्पर्य भवरोग से तथा पीड़ा का तीनों तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक) से है जिसका शमन श्री हनुमान जी के स्मरण मात्र से होता है। श्री हनुमान जी के स्मरण से निरोगता तथा निर्द्वन्द्वता प्राप्त होती है।

Ultimately, Rama exposed his divine powers since the incarnation in the God Vishnu, and slew Ravana and the rest of the demon army. Eventually, Rama returned to his residence of Ayodhya to return to his place as king. Just after blessing all individuals that aided him from the fight with gifts, Rama gave Hanuman his present, which Hanuman threw absent.

Victory to Lord Hanuman, the ocean of knowledge and advantage. Victory into the Lord who is supreme among the monkeys, illuminator with the 3 worlds.

श्री गुरु चरन सरोज website रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।

भावार्थ – जो इस (हनुमान चालीसा) का सौ बार पाठ करता है, वह सारे बन्धनों और कष्टों से छुटकारा पा जाता है और उसे महान् सुख (परमपद–लाभ) की प्राप्ति होती है।

राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥ सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।

व्याख्या – संसार में मनुष्य के लिये चार पुरुषार्थ हैं – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। भगवान के दरबार में बड़ी भीड़ न हो इसके लिये भक्तों के तीन पुरुषार्थ को हनुमान जी द्वार पर ही पूरा कर देते हैं। अन्तिम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति के अधिकारी श्री हनुमन्तलाल जी की अनुमति से भगवान के सान्निध्य पाते हैं।

व्याख्या – भजन अथवा सेवा का परम फल है हरिभक्ति की प्राप्ति। यदि भक्त को पुनः जन्म लेना पड़ा तो अवध आदि तीर्थों में जन्म लेकर प्रभु का परम भक्त बन जाता है।

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